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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

9. मन की आंखें 

यह कहानी घाट घाट का पानी पीना मुहावरे पर आधारित है । 

कहते हैं कि भगवान अगर कोई एक चीज नहीं देते हैं तो उसके बदले में दूसरी कोई और चीज दे देते हैं । अक्सर ऐसे अनेक उदाहरण दिखाई पड़ते हैं जब अंधे व्यक्ति को सब कुछ दिखाई और बहरे व्यक्ति को सब कुछ सुनाई दिया है । भगवान ने उन्हें मन की आंखें और मन के कान दिये थे जिनसे वे सब कुछ देख या सुन लेते थे । 
सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे । पूरे के पूरे अंधे । उन्हें बिल्कुल भी नहीं दिखता था । अंधी औलाद का क्या करे कोई ? मां बाप ने भी उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया था । जब दुनिया में और किसी का भरोसा न हो तो फिर भगवान का ही भरोसा रह जाता है । सूरदास जी ने अपना सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया । "अब जो करेंगे वो ईश्वर ही करेंगे" । ऐसा सोचकर वे बेफिक्र हो गये । जब किसी का सहारा भगवान बन जाते हैं तो फिर उसे और किसी सहारे की आवश्यकता नहीं रह जाती है । सूरदास जी अब श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन गए थे । 

श्रीकृष्ण की सेवा करना, भजन कीर्तन, सत्संग करना , बस यही काम करते थे सूरदास जी । इसके अलावा और कोई काम नहीं था उनके पास । वे भगवान की भक्ति में पदों की रचना करते थे और उन्हें दिन भर गुनगुनाते रहते थे । कहते हैं कि सूरदास जी ने एक लाख से भी अधिक पदों की रचना की थी । भगवान का भजन कीर्तन करते करते वे एक एक करके सारे तीर्थों का भ्रमण कर रहे थे । इस तरह सूरदास जी ने घाट घाट का पानी पी लिया था । 

घाट घाट का पानी पीते पीते सूरदास जी तीर्थाटन करते करते वृन्दावन आ गये । यहां पर उन्होंने एक कुटिया बना ली थी । वे श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए रोज आते थे और दर्शन करने के बाद रोज एक पद सुनाते थे । उस पद में बांके बिहारी जी की उस दिन की पोशाक के रंग का वर्णन होता था । सभी पंडे पुजारी हैरान थे कि सूरदास जी अंधे होकर भी पोशाक का रंग कैसे बता देते हैं ? इसमें क्या राज है ? या तो वे अंधे नहीं हैं और अंधे होने का नाटक कर रहे हैं या फिर उन्हें कोई पहले पोशाक का रंग बता देता है जिससे ये उस दिन की पोशाक का रंग अपने पद में बता देते हैं । इसका भेद जानने की सबके मन में उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हो गई कि वे ऐसा कैसे करते हैं । 

सबसे पहले तो सूरदास जी की जांच की गई कि वे अंधे हैं या नहीं । जब वे सब तरफ से आश्वस्त हो गए कि सूरदास जी वाकई अंधे हैं तब उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई गई । एक व्यक्ति को सूरदास जी के घर के सामने बैठा दिया गया कि कोई व्यक्ति सूरदास जी से मिलकर पोशाक का रंग तो नहीं बता देता है ? जब सूरदास जी मंदिर के लिए निकले तो वह व्यक्ति उनके पीछे पीछे चल दिया । इस तरह से वे इस बात से भी आश्वस्त हो गये थे कि सूरदास जी से कोई भी व्यक्ति नहीं मिला था उस दिन । 

अब बात पोशाक पर आ गई । कौन सी पोशाक पहनायें, यह तय नहीं हो पा रहा था । प्रमुख पुजारी ने कहा कि आज भगवान को कोई भी पोशाक नहीं पहनाई जावे । अब देखते हैं कि सूरदास जी कैसे आज की पोशाक का रंग बताते हैं ? तब एक बुजुर्ग पुजारी ने कहा कि भगवान को यूं बिना पोशाक के रखना सही नहीं है इसलिए कुछ तो पहनाया जाना चाहिए । सभी पुजारियों की राय से भगवान को एक मोतियों की माला गले में और एक माला कमर में पहना दी गई । इसके बाद मंदिर के पट दर्शनों के लिए खोल दिये गये । 
सूरदास जी ने मन की आंखों से दर्शन कर लिये और वे दर्शन करने के बाद थोड़ा झिझके । उन्होंने अपने गले में पड़े उत्तरीय को शर्म के कारण आंखों पर लगा लिया और बाद में उसे अपने होठों पर लगाये हुये हीमन ही मन वह पद पढ लिया । 

उनके आसपास बहुत से पंडे पुजारी खड़े थे जो यह जानना चाहते थे कि आज सूरदास जी कौन सा पद सुनाते हैं और उसमें कौन से रंग की पोशाक बताते हैं ? मगर सूरदास जी तो आज चुप ही थे । एक पंडे ने कहा 
"क्यों सूरदास जी महाराज, आज पद नहीं सुनाओगे क्या" ? 
इन शब्दों को सुनकर सूरदास जी थोड़े असमंजस में रहे कि पद सुनाऐं या नहीं सुनाऐं ? फिर भी वे चुप ही रहे । 

तब एक युवा पुजारी ने उनके मर्मस्थल पर चोट करते हुए कहा "ये तो ढोंगी महाराज हैं , ये क्या सुनाऐंगे ? भक्त होने का दिखावा करते हैं बस, जबकि ये कोई भक्त वक्त हैं ही नहीं" । 

अब तो व्यंग्य बाणों की मार झेलना असह्य था । उन्होंने एक बार आसमान की ओर देखकर मन ही मन अपने आराध्य से कहा "देख रहे हो भगवन ! एक भक्त का आपके सामने कैसा अपमान हो रहा है ? पर यह वस्तुत: एक भक्त का अपमान नहीं, अपितु आपका अपमान है । भक्त आपकी प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर पद नहीं सुनाना चाहता था पर इन पंडे, पुजारियों ने उस भक्त को विवश कर दिया है पद सुनाने के लिए । अब तुम जानो और तुम्हारा काम । ये भक्त तो फक्कड़ है । इसकी तो कोई मान मर्यादा है नहीं । बाकी रही आपकी बात ? तो आप खुद संभाल लेना" । 

और सूरदास जी ने पद गाना आरंभ कर दिया 

देखे री हरि नंगम नंगा 
जलसुत भूषण अंग विराजत 
बसन हीन छवि उठत तरंगा ।। 

अंग अंग प्रति अमित माधुरी 
निरख लजित रति कोटि अनंगा। । 
देखे री हरि नंगम नंगा ।। 


इस पद को सुनकर सभी पंडे पुजारी मान गये कि सूरदास जी की मन की आंखें बहुत सुंदर हैं जो सब कुछ देख लेती हैं । मन की आंखें हर किसी को नहीं देते हैं भगवान , वे तो अपने अनन्य भक्त को ही देते हैं । सूरदास जी से बड़ा और कौन भक्त होगा भगवान का ? सभी लोगों ने सूरदास जी पर पुष्प वर्षा की और उन्हें अपने कंधों पर उठा लिया और कंधों पर उठाये उठाये ही श्री बांके बिहारी जी की एक परिक्रमा करा दी । उस दिन के बाद से लोग उनकी जय जयकार करने लग गये । 

सच में भगवान की लीला बड़ी अद्भुत है । उनकी कृपा हो तो अंधा भी देखने लग जाता है और बहरा सुनने लग जाता है । बस, अपने आपको विस्मृत कर समस्त ध्यान भगवान में लगाना है । समस्त कर्म भगवान के निमित्त करने हैं और स्वयं को भगवान का दास समझना है । फिर ईश्वर का चमत्कार देखिए । 

श्री हरि 
15.1.2023 


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6 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:57 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:09 PM

धन्यवाद मैम

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Varsha_Upadhyay

16-Jan-2023 10:40 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jan-2023 11:26 PM

धन्यवाद जी

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Abhinav ji

16-Jan-2023 09:45 AM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jan-2023 11:26 PM

धन्यवाद जी

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